भारतीयता का मूल्य

 

"बेमिसाल" - दोस्तों, यह फिल्म इस वख्त मै देख रहा हुँ। इतना प्रभावित हुवा हुँ इसके हरेक पहलु से,कि सोचा चलो फिल्म का २५% हिस्सा बाद्  मे देख लूंगा। फिलहाल तो fb  पर एक खूबसूरत सी पोस्ट बना लेता हुँ। यह फिल्म १९८२ मे आई थी। वैसे तो दोस्तों इस फिल्म को आये हुवे सिर्फ ४१ साल हुवे हैँ पर लगता ऐसा हैँ कि एक ज़माना बीत गया हो जैसे। जैसे ४१० साल बीत गये हो, न की ४१।कारण इसका यह हैँ कि उस वख्त के हालत और वर्तमान समय मे मित्रों जमीन आसमान का फ़र्क़ आ चुका हैँ। 

वो दौर आजकल के दौर से बहोत ही सुंदर था। मै उस वख्त १२ साल का बच्चा था पर मुझे ईश्वर कृपा से सब कुछ ऐसे याद हैँ जैसे कल की बात हो। सब कुछ आज के दिनों से अलग था। जिंदगी की रफ़्तार धीमी अवश्य थी, पर खूबसूरत थी। आजकल हरेक चीज़ लोग "जल्दी जल्दी" करते हैँ - बोलते हैँ तो स्पीड से, खाते हैँ तो जल्दी जल्दी, पैसे वाला बनना हैँ? तो वो भी जल्दी जल्दी??😃😂🤣😂😂 क्या पागलपन चल रहा हैँ ये सब?😃🤣😂 आखिर जाना किधर हैँ तुझे ये सब जल्दी जल्दी कर के? समशान भूमि में  ही ना? तो ये सब जल्दी जल्दी का दिखावा क्यों कर रहा हैँ, पागल तु? कभी आराम् से चबा चबा के खा के देख, कितना मज़ा आता हैं उससे। कभी गहरी, लम्बे तक, बर्षों तक चलती रहे ऐसी दोस्ती कर के देख, तेरे इस One Night Stand वाले, सिर्फ सेक्स की बदबू वाले दौर मे। उसका स्वाद ही कुछ और हैँ। रिश्तों मे से स्वार्थ की गन्दगी को हटा के कभी किसी अनजान से प्यार से, आराम से बात कर के देख। मालूम पड़ेगा की आज तक जिसे तु "wastage of time" (समय की बर्बादी) समझ रहा था, वो ही दर्-असल् अनहद आनंद का रास्ता हैँ। कभी अल्ट्रा मॉडर्न वस्त्रों को हर वख्त पहनने का पागलपन छोड़ कर, सादगी वाले वस्त्र पहन के देख। मालुम पड़ेगा की भारतीय संस्कृति का मूल्य क्या होता हैँ। कभी रामायन, महाभारत, वेद उपनिषद, भगवत गीता के कुछ अंश पढ़ - मालुम पड़ेगा की तु स्वयं कैसी जबरदस्त संस्कृति का, कितनी प्रचंड विरासत का वारिस हैँ, हक़दार हैँ। पाश्चात्य संस्कृति घुटने टेंक जाए ऐसी हैँ हमारे देश की संस्कृति, उसकी अस्मिता, उसकी धरोहर और सभ्यता। 


हाँ तो दोस्तों, वापिस आता हुं,  "बेमिसाल" फिल्म पे। सबसे अच्छी बात अगर इस फिल्म की हैँ तो वह हैँ इसका बेहद मधुर, कर्नप्रिय संगीत। राहुल देव बर्मन ने इसे बनाया हैँ। आहा, क्या लाजवाब, दिल के तारों को छु जाने वाला संगीत बनाया हैँ उन्होंने। "ए री पवन, ढूंढे किसे तेरा मन, चलते चलते, बावरी सी तु फिरे, कौन हैँ तेरा सजन" - ये गाना सर्वश्रेष्ठ हैँ। लताजी ने इसे क्या खूबी से गाया हैँ। शायद ८० के दशक के सबसे मधुर ३ गानों की श्रृंखला में आये, ऐसा गाना था ये। दूसरे स्थान पर आता हैँ गाना, "कितनी खूबसूरत ये तस्वीर हैँ, मौसम बेमिसाल बेनज़ीर हैँ"। किशोरदा लताजी और सुरेश वाडेकर  ने बड़े प्यारे अंदाज़ मे गाया हैँ। फिर " किसी बात पर मैं किसी से खफा हू" और "इक रोज़ मै तड़प कर इस दिल को थाम लूंगा भी" - ये दो गाने जो की किशोरदा ने गाये थे, वो भी बहुत ही मधुर लगते हैँ। इन गानों के lyrics (बोल) लिखे हैँ आनंद बक्शी साहब ने, जो कि एक आला दरज्जे के song writer/lyricist थे उस दौर के। दूसरा पहलू हैँ - अभिनय। राखी गुलज़ार जैसी आँखों से अभिनय करने वाली अत्यंत सशक्त अभिनेत्री जिस फिल्म मे केंद्रीय किरदार निभा रही हो, उस फिल्म का तो केहना ही क्या, मित्रों। अमिताभ बच्चन और विनोद मेहरा का अभिनय भी बहुत उत्कृष्ट कक्षा का हैँ। इसके अलावा इसकी screenplay, outdoor shooting (जो की कश्मीर की खूबसूरत पहाड़ियों मे हुई थी) वह भी सराहनीय हैँ। 


संक्षित मे अगर समाप्त करें तो भारतीय मूल्य, भारतीय जीवन की सही शैली, यहाँ की सभ्यता, अस्मिता, गहराई, प्यार मुहोब्बत से भरा हुवा वातावरण - यह सब कुटकूट के भरा हैँ इस फिल्म मे। अवश्य देखे। 


- (Kb/Original/26-03-2023/1)

Comments

Popular posts from this blog

Back to "Unstable Governments" in India and its global implications

My opinion on "Barkha Vs Arnab"

Arrrogance of Govt. and Semi-govt.employees