"आदिपुरुष" पर प्रतिबंध होना ही चाहिए

रावण ने मां सीता का अपहरण किया और इस तरह से भगवान श्रीराम को युद्ध के लिए ललकारा था। उनको पहले से मालूम था कि ऐसा करने पर उनकी मृत्यु निश्चित हैं, फिर भी उन्होंने राम से बैर इसलिए कर लिया क्यों कि उनको उन्हीं के हाथों मृत्यु चाहिए थी। एक भगवान के हाथों अगर मृत्यु मीले तो मोक्ष निश्चित हैं। तो रावण ने मोक्ष प्राप्त करने हेतु सीतामैया का अपहरण किया था। 

उसके अलावा वो अभिमानी था। उसको अपने बल और चातुर्य पर बड़ा अभिमान था। बस ये दो दुर्गुणों को निकाल दे तो रावण के पास ऐसे सैंकड़ों गुण थे, जिससे की वो एक महापुरुष की कक्षा में आ सकता था: 

1) वह रोज एक पूरा प्रहर (3 घंटे) सुबह को भगवान शीव की पूरे हृदयसे  आराधना करता था। बहुत बड़ा शीवभक्त था।

(2) दान धर्म का पालन करता था।

(3) शारीरिक दृष्टि से महाशक्तिसाली था। 

(4) बहुत बुद्धिवान था। उसके 10 सर उसकी बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं। 

(5) अपनी प्रजा का खयाल रखता था।

(6) सीता जी को छोड़ दे तो इतना शक्तिशाली और बुद्धिमान होने के पश्चात भी पूरे जीवन में उसने दूसरी स्त्रियों के ऊपर बुरी नज़र नहीं डाली थी, अपनी किसी दासी पर भी नहीं। स्त्रियों और लड़कियों का खूब सम्मान करता था। (7) अपहरण किये जाने के पश्चात सीताजी लगभग 11 महिने रावण की अशोक-वाटिका में रहे। अगर रावण चाहता तो वो सीताजी से किसी भी प्रकार की शारीरिक छेड़छाड़ कर सकता था। पर ये उसने कभी नहीं किया। 


मित्रों, मैं यहाँ रावण के पक्ष में लिखने नहीं आया। चरित्र की एक खामी भी पूरा जीवन नष्ट कर सकते हैं वो हमने आशाराम बापू के उदाहरण से देख ही लिया था। तब रावण में दो-दो खामियां थी। तो ऐसा कहना संभव नहीं कि वो एक अच्छा मनुष्य था। पर जिस तरह आए ओम रावत नाम के फ़िल्म डिरेक्टर ने उनकी आनेकाली फिल्म, "आदिपुरुष" में रावण का अत्यंत घिनौना स्वरूप दिखाया हैं, वह हमारे शास्त्रों में वर्णित असली रावण के शब्दचित्र से बिल्कुल विभिन्न हैं। 

आदिपुरुष के trailer में रावण बिल्कुल ही "पद्मावत" फ़िल्म में दिखाए गए अलाउद्दीन खिलजी जैसा गया-गुज़रा, सड़ा हुवा जानवर लगता हैं, जिसको देखते ही एक प्रकार की घिन्न आनी शुरू हो जाती हैं। ऐसा लगता हैं जैसे रावण, जो कि वास्तव में एक उच्च कोटि का ब्राह्मण था, एक महाज्ञानी पंडित था, वो कोई आतंकवादी हो, उस तैमूर जैसा जिसने 2 लाख से ज्यादा हिंदुओं को बेरहमी से कुचल डाला था।


कहाँ रामानंद सागर साहब के धारावाहिक "रामायण" का उपेंद्र त्रिवेदी अभिनीत रावण, जिसको देख कर एक प्रकार का सम्मान दिलसे उभरता था, फिर चाहे क्यों वो उस धारावाहिक में मुख्य खलनायक क्यों न हो। उसमें वह अस्मिता, वह चेतना, वह हकरात्मक शक्तियां नज़र आती थी, जिससे देखने वाले के दिल और दिमाग में सम्मान का भाव जन्म लेता हैं। जब की ओम रावत ने जिस प्रकार का विचित्र रावण "आदिपुरुष" में दिखाया हैं, उसे देख कर ऐसा कोई सम्मान जन्म नहीं लेता। इसके अलावा हनुमान जी को भी बिल्कुल बेकार तरीके से दिखाया गया हैं। इस फिल्म पर प्रतिबंध की जो जबरदस्त मांग उठी हैं, वह जायज़ हैं। मैं उसके पक्ष में हूँ।


जयश्रीराम


- कमलेश भट्ट

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